Avyay in hindi अव्यय की परिभाषा -अव्यय व्याकरण के अन्य पदों से भिन्न होते हैं। संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रियापदों में रूप परिवर्तन होता है, इसलिए इन्हें विकारी पद कहा जाता है।
वहीं कुछ शब्द ऐसे होते हैं जिनका रूप सदैव एक ही बना रहता है, उसमें परिवर्तन नहीं होता। ऐसे एक ही रूप बने रहने के कारण इन्हें अविकारी पद कहते हैं। हिंदी के कुछ अपने अव्यय हैं, कुछ संस्कृत से लिए हुए हैं। परंतु जिस अर्थ में अव्यय हिंदी में प्रयुक्त होता है, विश्व की किसी और भाषा में नहीं होता।
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अव्यय की परिभाषा Avyay in hindi
“समझिए, अव्यय वे शब्द हैं जिनमें लिंग, वचन, पुरुष, कारक आदि से कोई विकार या रूप परिवर्तन नहीं होता।”ऐसे शब्दों को रूपांतरण न होने के कारण अविकारी और व्यय न होने के कारण अव्यय कहते हैं। जैसे- इधर, उधर, जब, तब, यहाँ, वहाँ, अभी, कब, क्यों, आह, वाह, ओ, हो, अरे, और, एवं, तथा, इसलिए, परंतु, लेकिन, बल्कि, चूँकि, अर्थात, अंत:, अतएव, केवल आदि।
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अव्यय और क्रियाविशेषण
पं. किशोरीदास बाजपेयी के अनुसार कुछ लोग अव्यय (avyay) मात्र को क्रिया-विशेषण कहते हैं, यह अंग्रेजी व्याकरण के ‘ऐडवर्ब’ शब्द का अंधानुकरण है। हिंदी व्याकरण में ‘अव्यय’ शब्द अलग है। इसलिए सभी अव्ययों को क्रिया-विशेषण नहीं कहा जा सकता। जो अव्यय क्रिया की विशेषता प्रगट करे, वही क्रिया-विशेषण कहलायेँगे, सभी नहीं। जैसे- राम धीरे-धीरे पढ़ता है।
इस वाक्य में ‘धीरे-धीरे’ अव्यय क्रिया की विशेषता बता रहा है, अंत: यह अव्यय के साथ क्रिया-विशेषण भी है। वहीं बहुत सारे अव्यय ऐसे भी हैं जो क्रिया की विशेषता नहीं बताते।
अव्यय के भेद
अव्यय के 5 प्रमुख भेद हैं-
- क्रिया-विशेषण
- संबंधबोधक
- समुच्चयबोधक
- विस्मयबोधक
- निपात
क्रिया-विशेषण – Avyay in hindi
क्रिया-विशेषण – जो पद क्रिया की विशेषता बताता है, उसे क्रिया-विशेषण अव्यय कहते हैं, जैसे-
(क) लड़का बड़ी तेजी से कूद रहा है।
(ख) अधिक मत बोलो।
(ग) कम खाओ।
उपर्युक्त वाक्यों में ‘बड़ी तेजी से’, ‘अधिक’ और ‘कम’ क्रिया-विशेषण हैं।
क्रिया-विशेषण के भेद
क्रिया-विशेषण के भेद मुख्यत: तीन आधारों पर होते हैं, जो निम्नलिखित हैं-
(i) अर्थ की दृष्टि से क्रिया-विशेषण के भेद
(ii) प्रयोग की दृष्टि से क्रिया-विशेषण के भेद
(iii) रूप की दृष्टि से क्रिया-विशेषण के भेद
(i) अर्थ की दृष्टि से क्रिया-विशेषण के भेद – अर्थ की दृष्टि से क्रिया-विशेषण के 4 भेद हैं-
(a) कालवाचक, (b) स्थानवाचक, (c) रीतिवाचक, (d) परिमाणवाचक
(a) कालवाचक क्रिया-विशेषण– जो पद क्रिया के काल या समय की विशेषता बताता है, उसे कालवाचक क्रिया-विशेषण अव्यय कहते हैं; जैसे- आज, अब, कब, सुबह, सदैव, कभी-कभी, प्रतिदिन, परसों, आज-कल आदि।
उदाहरण-
(क) रमेश परसों गुजरात से आया था।
(ख) गीता प्रतिदिन स्कूल जाती है।
(ग) महँगाई आज-कल बढ़ती जा रही है।
(घ) तुम चेन्नई कब जाओगे?
(b) स्थानवाचक क्रिया-विशेषण – जो पद क्रिया के स्थान का बोध कराता है, उसे स्थानवाचक क्रिया-विशेषण अव्यय कहते हैं; जैसे- यहाँ, वहाँ, कहाँ, इधर-उधर, ऊपर, नीचे, बाहर आदि।
उदाहरण-
(क) वह यहाँ रहता है।
(ख) वर्षा में कहाँ जाओगे?
(ग)माता जी बाहर गई हैं।
(घ) तुम इधर-उधर मत जाओ।
(c) रीतिवाचक क्रिया-विशेषण – जो पद क्रिया के होने की रीति या विधि संबंधी विशेषता बताता है, उसे रीतिवाचक क्रिया-विशेषण अव्यय कहते हैं; जैसे- धीरे-धीरे, ध्यानपूर्वक, कैसे, ठीक-टीक, तेज आदि।
उदाहरण-
(क) कार तेज दौड़ती है।
(ख) गीता ध्यानपूर्वक पढ़ती है।
(ग) घनश्याम यहाँ कैसे आया?
(घ) स्कूटर धीरे-धीरे चलती है।
(d) परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण – जो पद क्रिया की मात्रा या परिणाम बताए, वह परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण अव्यय है; जैसे- कम, बहुत, जरा, थोड़ा, खूब, अधिक, बिल्कुल आदि।
उदाहरण-
(क) तुम कम बोलो।
(ख) थोड़ा खाओ, खूब चबाओ।
(ग) राजस्थान में रोटी अधिक खाया जाता है।
(ग) मैं बिल्कुल थक गया हूँ।
(ii) प्रयोग की दृष्टि से क्रिया-विशेषण के भेद – प्रयोग की दृष्टि से क्रिया-विशेषण के 3 भेद होते हैं- (a) साधारण, (b) संयोजक, (c) अनुबद्ध
(a) साधारण क्रिया-विशेषण – वाक्य में स्वतन्त्र रूप से प्रयुक्त होने वाले क्रिया-विशेषण को साधारण क्रिया-विशेषण कहते हैं; जैसे- अब, कब, जल्दी, वहाँ, कहाँ आदि।
Avyay in hindi
उदाहरण-
(क) हाय! अब मैं क्या करूँ?
(ख) बेटा, जल्दी आओ।
(ग) अरे! साँप कहाँ गया?
(b) संयोजक क्रिया-विशेषण – उपवाक्य से संबंधित क्रिया-विशेषण को संयोजक क्रिया-विशेषण कहते हैं; जैसे- जहाँ, वहाँ; जब, तब।
उदाहरण-
(क) जहाँ अभी समुद्र हैं, वहाँ किसी समय जंगल था।
(ख) जब आप कहेंगे, तब मैं आऊँगा।
(c) अनुबद्ध क्रिया-विशेषण – किसी शब्द के साथ अवधारणा के लिए प्रयुक्त होने वाले क्रिया विशेषण को अनुबद्ध क्रिया-विशेषण कहते हैं; जैसे- तो, भी, तक, भर आदि।
उदाहरण-
(क) यह तो किसी ने धोखा ही दिया है।
(ख) मैंने उसे देखा तक नहीं।
(iii) रूप की दृष्टि से क्रिया-विशेषण भेद – रूप की दृष्टि से क्रिया-विशेषण के 3 भेद होते हैं-
(a) मूल, (b) यौगिक, (c) स्थानीय
(a) मूल क्रिया-विशेषण – ऐसे क्रिया-विशेषण, जो किसी दूसरे शब्दों के मेल से नहीं बनते, उन्हें मूल क्रिया-विशेषण कहते हैं; जैसे- अचानक, फिर, ठीक, दूर, नहीं आदि।
(b) यौगिक क्रिया-विशेषण – ऐसे क्रिया-विशेषण, जो किसी दूसरे शब्द में प्रत्यय या पद जोड़ने पर बनते हैं, उन्हें यौगिक क्रिया-विशेषण कहते हैं। यौगिक क्रिया-विशेषण संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, धातु और अव्यय के मेल से बनते हैं; जैसे- मन से, दिल से, जिससे, भूल से, चुपके से, देखते हुए, यहाँ तक, यहाँ पर, वहाँ पर, झट से आदि।
(c) स्थानीय क्रिया-विशेषण – ऐसे क्रिया-विशेषण, जो बिना रूपान्तर के किसी विशेष स्थान में आते हैं, उन्हें स्थानीय क्रिया-विशेषण कहते हैं; जैसे-
(क) वह अपना सिर पढ़ेगा।
(ख) चोर पकड़ा हुआ आया।
(ग) खरगोश उठकर भागा।
(घ) राक्षस मुझे क्या खाएँगे?
संबंधबोधक अव्यय – Avyay in hindi
संबंधबोधक अव्यय – जो शब्द वाक्य में किसी संज्ञा या सर्वनाम के बाद आकर उसका संबंध वाक्य के दूसरे शब्द से दिखाये, उसे संबंधबोधक अव्यय कहलाते हैं। यदि यह संज्ञा न हो, तो वही अव्यय क्रियाविशेषण कहलायेगा। इस अव्यय से पहले किसी न किसी परसर्ग की अपेक्षा रहती है; जैसे-
(क) इस मकान के पीछे धर्मशाला है।
(ख) मैं हास्टल से दूर पहुँच गया था।
(ग) उसके सामने तुम कहीं नहीं ठहर सकते।
(घ) रमेश बाज़ार की ओर गया।
संबंधबोधक के भेद – संबंधबोधक अव्यय के भेद मुख्यत: तीन आधारों पर होते हैं, जो निम्नलिखित हैं-
(i) प्रयोग के अनुसार संबंधबोधक के भेद
(ii) अर्थ के अनुसार संबंधबोधक के भेद
(iii) व्युत्पत्ति के अनुसार संबंधबोधक के भेद
(i) प्रयोग के अनुसार संबंधबोधक के भेद – प्रयोग के अनुसार संबंधबोधक अव्यय के 2 भेद हैं- (a) संबद्ध संबंधबोधक, (b) अनुबद्ध संबंधबोधक
(a) संबद्ध संबंधबोधक – जो संबंधबोधक शब्द संज्ञा की विभक्तियों के पीछे आते हैं, उन्हें संबद्ध संबंधबोधक अव्यय कहते हैं; जैसे- धन के बिना, किताब के बिना, नर की नाई आदि।
(बिना, नाई अव्यय क्रमश: के और की उपसर्ग के बाद आए हैं)
(b) अनुबद्ध संबंधबोधक – जो संबंधबोधक शब्द संज्ञा के विकृत रूप के बाद आते हैं, उन्हें अनुबद्ध संबंधबोधक अव्यय कहते हैं; जैसे- कई दिनों तक, सखियों सहित, प्याले भर, पुत्रों समेत आदि।
(तक, सहित, भर, समेत अव्यय क्रमश: दिन, सखी, प्याला, पुत्र के विकृत रूप के बाद आए हैं)
(ii) अर्थ के अनुसार संबंधबोधक के भेद – अर्थ के अनुसार संबंधबोधक अव्यय के 13 भेद हैं-
(a) कालवाचक- आगे, पीछे, पूर्व, पहले, बाद, लगभग, अनंतर, पश्चात्, उपरांत आदि।
(b) स्थानवाचक- आगे, पीछे, नीचे, तले, सामने, पास, दूर, निकट, समीप, भीतर, बाहर, नजदीक, यहाँ, बीच, परे, आदि।
(c) सादृश्यवाचक- समान, तरह, भाँति, नाई, बराबर, तुल्य, योग्य, लायक, सदृश, अनुसार, अनुरूप, अनुकूल, देखादेखी, सरीखा, सा, ऐसा, जैसा, मुताबिक आदि।
(d) तुलनावाचक- आगे, सामने, अपेक्षा, बनिस्बत आदि।
(e) दिशावाचक- तरफ, पार, आरपार, आसपास, ओर, प्रति आदि।
(f) साधनवाचक- द्वारा, जरिए, कर, हाथ, बल, जबानी, मारफत, सहारे आदि।
(g) हेतुवाचक- हेतु, खातिर, लिए, निमित्त, वास्ते, कारण, मारे, चलते आदि।
(h) विषयवाचक- बाबत, निस्बत, विषय, नाम, लेखे, जान, भरोसे आदि।
(i) व्यतिरेकवाचक- सिवा, बिना, बगैर, अलावा, अतिरिक्त, रहित आदि।
(j) विनिमयवाचक- पलटे, बदले, जगह, एवज आदि।
(k) विरोधवाचक- विरुद्ध, खिलाफ, उलटे, विपरीत आदि।
(l) सहचरवाचक- संग, साथ, समेत, सहित, पूर्वक, अधीन, स्वाधीन, वश आदि।
(m) संग्रहवाचक- तक, भर, मात्र, लौं, पर्यन्त आदि।
(iii) व्युत्पत्ति के अनुसार संबंधबोधक के भेद – व्युत्पत्ति के अनुसार संबंधबोधक अव्यय के 2 भेद हैं-(a) मूल संबंधबोधक, (b) यौगिक संबंधबोधक
(a) मूल संबंधबोधक- बिना, पर्यन्त, पूर्वक, नाई आदि।
(b) यौगिक संबंधबोधक-
- संज्ञा से-अपेक्षा, पलटे, लेखे, मारफत आदि।
- विशेषण से-समान, योग्य, ऐसा, उलटा, तुल्य आदि।
- क्रिया से-लिए, मारे, चलते, कर, जाने आदि।
- क्रियाविशेषण से-पीछे, परे, पास, ऊपर, भीतर, बाहर, यहाँ आदि।
समुच्चयबोधक अव्यय Avyay in hindi
समुच्चयबोधक अव्यय – “ऐसा पद (अव्यय) जो क्रिया या संज्ञा की विशेषता न बताकर एक वाक्य या पद का संबंध दूसरे वाक्य या पद से जोड़ता है, ‘समुच्चयबोधक’ कहलाता है।” जैसे-
आँधी आयी और पानी बरसा। यहाँ ‘और’ अव्यय समुच्चयबोधक है; क्योंकि यह पद दो वाक्यों- ‘आँधी आयी’, ‘पानी बरसा’- को जोड़ता है। समुच्चयबोधक अव्यय पूर्ववाक्य का संबंध उत्तरवाक्य से जोड़ता है। इसी तरह समुच्चयबोधक अव्यय दो पदों को भी जोड़ता है। जैसे- दो और दो चार होते हैं।
समुच्चयबोधक के भेद- समुच्चयबोधक अव्यय के 2 भेद होते हैं- (i) समानाधिकरण, (ii) व्यधिकरण
(i) समानाधिकरण – जो दो या उससे अधिक समान पदों, पदबंधों, उपवाक्यों को जोड़ता है, उसे समानाधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं; जैसे-
(क) मुकेश शाम को रोटी और सब्जी खाता है।
(ख) रोहित पेठा या मुरब्बा खाता है।
(ग) उसने अभिषेक को बहुत समझाया किंतु वह नहीं माना।
(घ) मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं है इसलिए विश्वविद्यालय नहीं आ पाऊँगा।
समानाधिकरण के भेद – समानाधिकरण के 4 भेद होते हैं-
(a) संयोजक- तथा, व, एवं, और आदि।
(b) विभाजक- या, वा, अथवा, किंवा, कि, चाहे …. चाहे, न …. न, न कि, नहीं तो आदि।
(c) विरोधदर्शक- पर, परन्तु, किन्तु, बल्कि, लेकिन, मगर, वरन आदि।
(d) परिणामदर्शक- इसलिए, सो, अतः, अतएव आदि।
(ii) व्यधिकरण – जो पद किसी वाक्य के एक या अधिक आश्रित उपवाक्यों को जोड़ता है, उसे व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय कहते हैं; जैसे-
(क) बलराम घर चला गया है क्योंकि उसके सिर में दर्द था।
(ख) माताजी ने कहा कि उसे तुरंत बुलाओ
(ग) मैं घर जा रहा हूँ ताकि दादी को दवा पीला सकूँ
(घ) उसने परिश्रम किया फिर भी सफल नहीं हुआ।
व्यधिकरण के भेद – व्यधिकरण के 4 भेद होते हैं-
(a) कारणवाचक- क्योंकि, जोकि, इसलिए कि आदि।
(b) उद्देश्यवाचक- कि, जो, ताकि, इसलिए कि आदि।
(c) संकेतवाचक- जो-तो, यदि-तो, यद्यपि-तथापि, चाहे-परन्तु, कि आदि।
(d) स्वरूपवाचक- कि, जो, अर्थात, याने, मानो आदि।
विस्मयबोधक अव्यय
विस्मयबोधक अव्यय – जिन अव्ययों से आश्चर्य, हर्ष, शोक, व्यथा, घृणा आदि मनोभावों के उद्गार व्यक्त होते हैं, पर उनका संबंध वाक्य या उसके किसी विशेष पद से न हो, उन्हें विस्मयादिबोधक अव्यय कहते है। इनका प्रयोग मनोभावों को तीव्र रूप में व्यक्त करने के लिए होता है। जैसे-
(क) वाह! क्या सुंदर दृश्य है।
(ख) अरे! गाड़ी से बचो।
(ग) क्या बोलूँ।
(घ) शाबाश! बहुत अच्छा काम किया तुमने।
(च) छि:! ऐसी गंदी बात करता है।
विस्मयादिबोधक के भेद – विस्मयादिबोधक अव्यय के 7 भेद होते हैं-
(i) हर्षबोधक- अहा!, वाह-वाह!, धन्य-धन्य, शाबाश!, जय, खूब आदि।
(ii) शोकबोधक- आह!, ऊह!, हा-हा!, हाय!, त्राहि-त्राहि आदि।
(iii) आश्चर्यबोधक- वाह!, हैं!, ऐ!, क्या!, ओहो!, अरे आदि
(iv) तिरस्कारबोधक- छिह!, हट, दूर!, धिक!, चुप!, अरे! आदि।
(v) अनुमोदनबोधक- हाँ-हाँ!, वाह!, शाबाश!, ठीक!, अच्छा! आदि।
(vi) संबोधनबोधक- रे!, अरे!, जी!, अजी!, लो, हे!, अहो! आदि।
(vii) स्वीकारबोधक- हाँ!, जी हाँ!, जी, ठीक!, अच्छा!, बहुत अच्छा! आदि।
निपात अव्यय Avyay in hindi
निपात अव्यय – वाक्य में जो अव्यय किसी शब्द या पद के बाद लगकर उसके अर्थ में विशेष प्रकार का बल या भाव पैदा करने में सहायता करते हैं, उन्हें निपात या अवधारणामूलक शब्द कहते हैं। निपात सहायक शब्द होते हुए भी वाक्य के अंग नहीं हैं।
परंतु वाक्य में इनके प्रयोग से उस वाक्य का समग्र अर्थ व्यक्त होता है। निपात का कोई लिंग, वचन नहीं होता। हिंदी में अधिकतर निपात शब्दसमूह के बाद आते हैं, जिनको वे बल प्रदान करते हैं; जैसे-
(क) शरद ही कल जाएगा
(ख) शरद कल ही जाएगा।
(ग) कल शरद भी जाएगा।
(घ) मैंने तो कुछ नहीं किया।
(च) तुम्हारे बारे में बच्चे तक जानते हैं।
निपात के कार्य – निपात के निम्नलिखित कार्य होते हैं-
- प्रश्न करने में प्रयोग; जैसे- क्या वह जा रहा है?
- अस्वीकृति प्रगट करने के लिए; जैसे- मेरा बढ़ा भाई आज वहाँ नहीं जायेगा।
- विस्मय प्रगट करने के लिए; जैसे- क्या! अच्छी पुस्तक है।
- वाक्य में किसी शब्द पर बल देने के लिए; जैसे- बच्चा भी जानता है।
निपात के भेद – निपात के 9 भेद हैं-
(i) सकारात्मक निपात- हाँ, जी, जी हाँ आदि।
(ii) नकारात्मक निपात- नहीं, जी नहीं आदि।
(iii) निषेधात्मक निपात- मत, खबरदार आदि।
(iv) प्रश्नबोधक निपात- क्या?, न आदि।
(v) विस्मयादिबोधक निपात- क्या, काश, काश कि आदि।
(vi) बलदायक निपात- तो, ही, तक, पर, सिर्फ, केवल आदि।
(vii) तुलनाबोधक निपात- सा आदि।
(viii) अवधारणबोधक निपात- ठीक, लगभग, करीब, तकरीबन आदि।
(ix) आदरबोधक निपात- जी आदि।
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