Mahadev Sanskrit Shlok – आज हम आप सभी के लिए महादेव भगवान जी के लिए कुछ चुननिंदा संस्कृत श्लोक लेकर आए हैं
इन Mahadev Sanskrit Shlok का जाप करने से आप के सारे कष्ट दूर हो जाएंगे ओर सारे अधूरे काम पूरे हो जाएंगे
आप प्रतिदिन इन श्लोको का जाप जरूर करे ओर ध्यान लगये इससे आप का जीवन मे कोई गम नही रहेगा ओर आप की जिंदगी खुशमय रहेगी
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शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रम्
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम:शिवाय॥1॥
मंदाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथ महेश्वराय।
मण्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै मकाराय नम:शिवाय॥2॥
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्दसूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्रीनीलकण्ठाय बृषध्वजाय तस्मै शिकाराय नम:शिवाय॥3॥
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्यमुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै वकाराय नम:शिवाय॥4॥
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै यकाराय नम:शिवाय॥5॥
पञ्चाक्षरिमदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥6॥
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम्
Dvadasa Jyotirlinga Stotram
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रिशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोमकारममलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारूकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यंबकं गौतमी तटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रात: पठेन्नर:।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥
अन्यथा शरणम् नाऽस्ति, त्वमेव शरणम् मम्।
तस्मात्कारूण भावेन्, रक्ष माम् महेश्वर:॥
mahadev shlok in sanskrit
लघुरुद्राभिषेक
ॐ
ॐ सर्वदेवेभ्यो नम :
ॐ नमो भवाय शर्वाय रुद्राय वरदाय च।
पशुनां पतये नित्यं उग्राय च कपर्दिने॥1॥
महादेवाय भीमाय त्र्यंबकाय शिवाय च।
इशानाय मखन्घाय नमस्ते मखघाति ने॥2॥
कुमार गुरवे नित्यं नील ग्रीवाय वेधसे।
पिनाकिने हविष्याय सत्याय विभवे सदा।
विलोहिताय धूम्राय व्याधिने नपराजिते॥3॥
नित्यं नील शीखंडाय शूलिने दिव्य चक्षुषे।
हन्त्रे गोप्त्रे त्रिनेत्राय व्याधाय च सुरेतसे॥4॥
अचिंत्यायाम्बिकाभर्त्रे सर्व देवस्तुताय च।
वृषभध्वजाय मुंडाय जटिने ब्रह्मचारिणे॥5॥
तप्यमानाय सलिले ब्रह्मण्यायाजिताय च।
विश्र्वात्मने विश्र्वसृजे विश्र्वमावृत्य तिष्टते॥6॥
नमो नमस्ते सत्याय भूतानां प्रभवे नमः।
पंचवक्त्राय शर्वाय शंकाराय शिवाय च॥7॥
नमोस्तु वाचस्पतये प्रजानां पतये नमः।
नमो विश्र्वस्य पतये महतां पतये नमः॥8॥
नमः सहस्त्र शीर्षाय सहस्त्र भुज मन्यथे।
सहस्त्र नेत्र पादाय नमो संख्येय कर्मणे॥9॥
नमो हिरण्य वर्णाय हिरण्य क्वचाय च।
भक्तानुकंपिने नित्यं सिध्यतां नो वरः प्रभो॥10॥
एवं स्तुत्वा महादेवं वासुदेवः सहार्जुनः।
प्रसादयामास भवं तदा शस्त्रोप लब्धये॥11॥
॥ इति शुभम्॥
विधि: तांबेका लोटा लेकर उसमें शुध्ध पानी, दूध, चावल, बिल्व पत्र, दुर्वा, सफेद तिल, घी, मिलाकर शिवलिंग उपर धृतधारा चालु रखके उपरोक्त लघुरुद्राभिषेकस्तोत्रम् का पठन ग्यारह बार श्रध्धापूर्वक करने से जीवन में आयी हुई और आनेवाली आधि, व्याधि और उपाधि से छुटकारा मिलता है और सुख शांति प्राप्त होती है।
॥ॐ मृत्युंजय मंत्र॥
वैदिक मंत्र
ॐ त्र्यम्बकँ य्यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्।
उर्व्वारूकमिव बन्धनान्न्मृत्योर्म्मुक्षीय मामृतात्।
ॐ त्र्यम्बकं य्यजामहे सुगन्धिम्पतिवेदनम्।
उर्व्वारूकमिव बन्धनादितोमुक्षीय मामुत:।।
पौराणिक मंत्र
ॐ मृत्युंजयमहादेवं त्राहि मां शरणागतम्।
जन्ममृत्युजराव्याधिपीडितं कर्मबन्धनै:॥
समय मंत्र
ॐ हौं जुं स: मृत्युंजयाय नम:॥
॥ रुद्राष्टकं (तुलसीदास)॥
॥ श्रीरुद्राष्टकम् ॥
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्॥१॥
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोऽहम्॥२॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम्।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा॥३॥
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि॥४॥
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम्॥५॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥६॥
न यावत् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।
न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम्॥७॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम्।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो॥८॥
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति॥
॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥
भगवान शंकर के 108 नाम
- शिव:- कल्याण स्वरूप
- महेश्वर:- माया के अधीश्वर
- शम्भू:- आनंद स्वरूप वाले
- पिनाकी:- पिनाक धनुष धारण करने वाले
- शशिशेखर:- चंद्रमा धारण करने वाले
- वामदेव:- अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले
- विरूपाक्ष:- विचित्र अथवा तीन आंख वाले
- कपर्दी:- जटा धारण करने वाले
- नीललोहित:- नीले और लाल रंग वाले
- शंकर:- सबका कल्याण करने वाले
- शूलपाणी:- हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले
- खटवांगी:- खटिया का एक पाया रखने वाले
- विष्णुवल्लभ:- भगवान विष्णु के अति प्रिय
- शिपिविष्ट:- सितुहा में प्रवेश करने वाले
- अंबिकानाथ:- देवी भगवती के पति
- श्रीकण्ठ:- सुंदर कण्ठ वाले
- भक्तवत्सल:- भक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले
- भव:- संसार के रूप में प्रकट होने वाले
- शर्व:- कष्टों को नष्ट करने वाले
- त्रिलोकेश:- तीनों लोकों के स्वामी
- शितिकण्ठ:- सफेद कण्ठ वाले
- शिवाप्रिय:- पार्वती के प्रिय
- उग्र:- अत्यंत उग्र रूप वाले
- कपाली:- कपाल धारण करने वाले
- कामारी:- कामदेव के शत्रु, अंधकार को हरने वाले
- सुरसूदन:- अंधक दैत्य को मारने वाले
- गंगाधर:- गंगा को जटाओं में धारण करने वाले
- ललाटाक्ष:- माथे पर आंख धारण किए हुए
- महाकाल:- कालों के भी काल
- कृपानिधि:- करुणा की खान
- भीम:- भयंकर या रुद्र रूप वाले
- परशुहस्त:- हाथ में फरसा धारण करने वाले
- मृगपाणी:- हाथ में हिरण धारण करने वाले
- जटाधर:- जटा रखने वाले
- कैलाशवासी:- कैलाश पर निवास करने वाले
- कवची:- कवच धारण करने वाले
- कठोर:- अत्यंत मजबूत देह वाले
- त्रिपुरांतक:- त्रिपुरासुर का विनाश करने वाले
- वृषांक:- बैल-चिह्न की ध्वजा वाले
- वृषभारूढ़:- बैल पर सवार होने वाले
- भस्मोद्धूलितविग्रह:- भस्म लगाने वाले
- सामप्रिय:- सामगान से प्रेम करने वाले
- स्वरमयी:- सातों स्वरों में निवास करने वाले
- त्रयीमूर्ति:- वेद रूपी विग्रह करने वाले
- अनीश्वर:- जो स्वयं ही सबके स्वामी है
- सर्वज्ञ:- सब कुछ जानने वाले
- परमात्मा:- सब आत्माओं में सर्वोच्च
- सोमसूर्याग्निलोचन:- चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आंख वाले
- हवि:- आहुति रूपी द्रव्य वाले
- यज्ञमय:- यज्ञ स्वरूप वाले
- सोम:- उमा के सहित रूप वाले
- पंचवक्त्र:- पांच मुख वाले
- सदाशिव:- नित्य कल्याण रूप वाले
- विश्वेश्वर:- विश्व के ईश्वर
- वीरभद्र:- वीर तथा शांत स्वरूप वाले
- गणनाथ:- गणों के स्वामी
- प्रजापति:- प्रजा का पालन- पोषण करने वाले
- हिरण्यरेता:- स्वर्ण तेज वाले
- दुर्धुर्ष:- किसी से न हारने वाले
- गिरीश:- पर्वतों के स्वामी
- गिरिश्वर:- कैलाश पर्वत पर रहने वाले
- अनघ:- पापरहित या पुण्य आत्मा
- भुजंगभूषण:- सांपों व नागों के आभूषण धारण करने वाले
- भर्ग:- पापों का नाश करने वाले
- गिरिधन्वा:- मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले
- गिरिप्रिय:- पर्वत को प्रेम करने वाले
- कृत्तिवासा:- गजचर्म पहनने वाले
- पुराराति:- पुरों का नाश करने वाले
- भगवान्:- सर्वसमर्थ ऐश्वर्य संपन्न
- प्रमथाधिप:- प्रथम गणों के अधिपति
- मृत्युंजय:- मृत्यु को जीतने वाले
- सूक्ष्मतनु:- सूक्ष्म शरीर वाले
- जगद्व्यापी:- जगत में व्याप्त होकर रहने वाले
- जगद्गुरू:- जगत के गुरु
- व्योमकेश:- आकाश रूपी बाल वाले
- महासेनजनक:- कार्तिकेय के पिता
- चारुविक्रम:- सुन्दर पराक्रम वाले
- रूद्र:- उग्र रूप वाले
- भूतपति:- भूतप्रेत व पंचभूतों के स्वामी
- स्थाणु:- स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले
- अहिर्बुध्न्य:- कुण्डलिनी- धारण करने वाले
- दिगम्बर:- नग्न, आकाश रूपी वस्त्र वाले
- अष्टमूर्ति:- आठ रूप वाले
- अनेकात्मा:- अनेक आत्मा वाले
- सात्त्विक:- सत्व गुण वाले
- शुद्धविग्रह:- दिव्यमूर्ति वाले
- शाश्वत:- नित्य रहने वाले
- खण्डपरशु:- टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले
- अज:- जन्म रहित
- पाशविमोचन:- बंधन से छुड़ाने वाले
- मृड:- सुखस्वरूप वाले
- पशुपति:- पशुओं के स्वामी
- देव:- स्वयं प्रकाश रूप
- महादेव:- देवों के देव
- अव्यय:- खर्च होने पर भी न घटने वाले
- हरि:- विष्णु समरूपी
- पूषदन्तभित्:- पूषा के दांत उखाड़ने वाले
- अव्यग्र:- व्यथित न होने वाले
- दक्षाध्वरहर:- दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले
- हर:- पापों को हरने वाले
- भगनेत्रभिद्:- भग देवता की आंख फोड़ने वाले
- अव्यक्त:- इंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले
- सहस्राक्ष:- अनंत आँख वाले
- सहस्रपाद:- अनंत पैर वाले
- अपवर्गप्रद:- मोक्ष देने वाले
- अनंत:- देशकाल वस्तु रूपी परिच्छेद से रहित
- तारक:- तारने वाले
- परमेश्वर:- प्रथम ईश्वर
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